1216 – وعن أَبي هريرة — رضي الله عنه : أنَّ رسول الله — صلى الله عليه وسلم — ، قَالَ :
(( مَنْ أنْفَقَ زَوْجَيْنِ في سَبِيلِ اللهِ نُودِيَ مِنْ أبْوَابِ الجَنَّةِ ، يَا عَبْدَ اللهِ هَذَا خَيرٌ ، فَمَنْ كَانَ مِنْ أهْلِ الصَّلاَةِ دُعِيَ مِنْ بَابِ الصَّلاَةِ ، وَمَنْ كَانَ مِنْ أهْلِ الجِهَادِ دُعِيَ مِنْ بَابِ الجِهَادِ ، وَمَنْ كَانَ مِنْ أهْلِ الصِّيَامِ دُعِيَ مِنْ بَابِ الرَّيَّانِ ، وَمَنْ كَانَ مِنْ أهْلِ الصَّدَقَةِ دُعِيَ مِنْ بَابِ الصَّدَقَةِ )) قَالَ أَبُو بَكْرٍ — رضي الله عنه — : بِأبي أنْتَ وَأُمِّي يَا رسولَ اللهِ ! مَا عَلَى مَنْ دُعِيَ مِنْ تِلْكَ الأَبْوَابِ مِنْ ضَرورةٍ ، فهل يُدْعى أحَدٌ مِنْ تِلْكَ الأبوَابِ كُلِّهَا ؟ فَقَالَ : (( نَعَمْ ، وَأرْجُو أنْ تَكُونَ مِنْهُمْ )) متفقٌ عَلَيْهِ .
1216 – Передают со слов Абу Хурайры, да будет доволен им Аллах, что (однажды) посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, сказал:
«Потратившего две вещи[1] на пути Аллаха призовут из врат рая: “О раб Аллаха! Это – благо!” И совершавших молитвы призовут из врат молитвы, принимавших участие в джихаде призовут из врат джихада, постившихся призовут из врат “ар-Раййан”, а дававших садаку призовут из врат садаки». (Услышав это,) Абу Бакр, да будет доволен им Аллах, сказал: «Да станут отец мой и мать выкупом за тебя, о посланник Аллаха! Ни в чём не будут нуждаться те, кого призовут из этих врат, но найдутся ли такие, кого станут призывать изо всех врат (рая)?», – и (пророк, да благословит его Аллах и приветствует,) сказал: «Да, и я надеюсь, что ты окажешься среди них». Этот хадис передали аль-Бухари (1897) и Муслим (1027).
[1] В одной из версий этого хадиса, передаваемой со слов другого передатчика, сообщается, что пророка, да благословит его Аллах и приветствует, спросили: “Что это за две ве щи?”, — на что он ответил: “Два коня, или два телёнка или два верблюда”. Возможно, что речь идёт о совершении двух благих дел, например, о двух молитвах, соблюдении поста в течении двух дней и так далее. Возможно также, что здесь подразумеваются два вида благих дел.
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شرح الحديث
في هذا الحديثِ يُبيِّنُ النَّبيُّ صلَّى الله عليه وسلَّم أنَّ مَن تصدَّق بعَدَد اثنين مِن أيِّ شيءٍ من الملبوساتِ أو النُّقودِ أو الطَّعام، فأَعطَى دِرهمينِ، أو رَغيفين، أو ثوبينِ لِمَن هو في حاجةٍ إليهما؛ ابتغاءً لرضوانِ الله نادَتْه الملائكةُ مِن أبواب الجنة مرحِّبةً بقُدومِه إليها، وهي تقول: لقد قدَّمتَ خيرًا كثيرًا تُثاب عليه اليومَ ثوابًا كبيرًا. وقد جعَل لكلِّ عبادةٍ في الجنَّة بابًا مخصوصًا؛ فالمُكثِرون من الصَّلاة يُنادَون مِن باب الصَّلاة، ويَدخُلون منه، وهكذا الأمرُ بالنِّسبةِ إلى سائرِ العباداتِ مِن جِهادٍ وصدَقة. والمُكثِرون من الصَّومِ تَستقبِلُهم الملائكةُ عند باب الريَّان داعيةً لهم بالدُّخول منه، وسُمِّي بذلك؛ لأنَّه مَن دخَله لم يَظمَأْ أبدًا. والمُكثِرون من الصَّدقةِ، يُدْعَونَ إلى دُخولِ الجَنَّةِ مِن بابِ الصَّدقةِ؛ فقال أبو بكر رضِي اللهُ عنه : بأبي وأمِّي يا رسولَ اللهِ، ما على مِن دُعِي مِن تلكَ الأبوابِ من ضرورةٍ، أي: ليس على المدعوِّ مِن كلِّ الأبوابِ مَضرَّةٌ، أي: قدْ سَعِد مَن دُعِيَ مِن أبوابِها جميعًا، وقيل: معناه أنَّه مَن دُعِي مِن بابٍ واحدٍ فقدْ حَصَل مُرادُه، وهو دخولُ الجَنَّة، وليس هناكَ ضرورةٌ عليه أنْ يدُعى مِن تِلك الأبوابِ كلِّها. ثم سألَ أبو بكرٍ رضِي اللهُ عنه: فهل يُدْعَى أحدٌ مِن تلك الأبوابِ كلِّها؟ فأجابَه صلَّى الله عليه وسلَّم: ((نعم))، أيْ: يوجَد مِن المؤمنين مَن يُدْعى مِن أبواب الجنة الثَّمانيةِ؛ لكثرةِ عِباداتِه وتنوُّعِها واختلافِها، ((وأرجو أنْ تكونَ منهم))؛ وذلك لاجتهادِ أبي بكرٍ رضِي اللهُ عنه في كلِّ العِبادات، وحِرصِه على فِعل الخيراتِ.
وفي الحديثِ: فضيلةٌ ظاهرةٌ لأبي بكرٍ الصِّدِّيقِ رضِي اللهُ عنه.