1317 – وعن أنس — رضي الله عنه — ، قَالَ :
غَابَ عَمِّي أنسُ بنُ النَّضْرِ — رضي الله عنه — عن قِتَالِ بَدْرٍ ، فَقَالَ : يَا رسولَ اللهِ ، غِبْتُ عَنْ أوَّلِ قِتَالٍ قَاتَلْتَ المُشْرِكِينَ ، لَئِنِ اللهُ أشْهَدَنِي قِتَالَ المُشْرِكِينَ لَيَرَيَنَّ اللهُ مَا أصْنَعُ . فَلَمَّا كَانَ يَومُ أُحُدٍ انْكَشَفَ المُسْلِمُونَ فَقَالَ : اللَّهُمَّ إنِّي اعْتَذِرُ إلَيْكَ مِمَّا صَنَعَ هؤُلاءُ — يعني : أصْحَابَهُ — وَأبْرَأُ إلَيْكَ مِمَّا صَنَعَ هؤُلاءِ — يَعنِي : المُشْرِكِينَ — ثُمَّ تَقَدَّمَ فَاسْتَقْبَلَهُ سَعْدُ بنُ مُعَاذٍ فَقَالَ : يَا سَعَدَ بنَ مُعَاذٍ ، الجَنَّةَ وَرَبِّ النَّضْرِ ، إنِّي أجِدُ ريحَهَا مِنْ دُونِ أُحُدٍ ! فَقَالَ سَعْدٌ : فَمَا اسْتَطَعْتُ يَا رسولَ اللهِ مَا صَنَعَ ! قَالَ أنسٌ : فَوَجدْنَا بِهِ بِضعاً وَثَمَانِينَ ضَربَةً بِالسَّيْفِ ، أَوْ طَعْنَةً برُمح أَوْ رَمْيةً بِسَهْمٍ ، وَوَجَدْنَاهُ قَدْ قُتِلَ وَمَثَّلَ بِهِ المُشْرِكُونَ ، فَمَا عَرَفَهُ أحَدٌ إِلاَّ أُخْتُهُ بِبَنَانِهِ . قَالَ أنسٌ : كُنَّا نَرَى — أَوْ نَظُنُّ — أنَّ هذِهِ الآية نَزَلتْ فِيهِ وَفي أشْبَاهِهِ : { مِنَ المُؤمِنينَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللهَ عَلَيْهِ فَمِنْهُمْ مَنْ قَضَى نَحْبَهُ } [ الأحزاب : 23 ] إِلَى آخرها . متفقٌ عَلَيْهِ ، وَقَدْ سبق في باب المجاهدة .
1317 – Сообщается, что Анас, да будет доволен им Аллах, сказал:
«(Однажды) мой дядя по отцу, Анас бин ан-Надр, да будет доволен им Аллах, не принимавший участия в битве при Бадре, сказал пророку, да благословит его Аллах и приветствует: “О посланник Аллаха, я не участвовал в твоём первом сражении с многобожниками, но, клянусь Аллахом, если (когда-нибудь потом) Он (даст мне возможность сразиться) с ними, то, поистине, Аллах увидит, что я сделаю!” А когда в день битвы при Ухуде мусульмане покинули (свои позиции), он воскликнул: “О Аллах, я приношу тебе извинения за то, что сделали эти”, — имея в виду своих товарищей — “и (призываю) Тебя (засвидетельствовать) мою непричастность, к (тому, что совершили) те!” (Сказав же это,) он двинулся вперёд и столкнулся с (бежавшим) Са’дом бин Му’азом, (которому) сказал: “О Са’д Ибн Му’аз, (я стремлюсь к) раю, и Господу Каабы и Господу ан-Надра! Поистине, я ощущаю его благоухание со стороны Ухуда!” (А потом) Са’д сказал: “Не смог я, о посланник Аллаха, (сделать того,) что сделал он!”»
Анас сказал:
«А (после боя) мы нашли его убитым и обезображенным многобожниками, насчитав на (его теле) восемьдесят ран от мечей, копий и стрел, и (был он изуродован до такой степени, что) никто не смог опознать его, кроме его сестры, узнавшей (Анаса) по пальцам его рук! И мы считали (или: … думали), что именно о нём и о подобных ему говорится в ниспосланном свыше аяте: “Среди верующих есть люди, которые верны тому, что они обещали Аллаху, и есть среди них такие, которые выполнили свой обет, и такие, которые ждут, не изменив (своего решения) ни в чём”».[1] (аль-Бухари; Муслим)[2]
[1] «Сонмы», 23.
[2] См. хадис № 109 и примечания к нему.
شرح الحديث
التخريج : أخرجه البخاري (2805) واللفظ له، ومسلم (1903)
كان أنسُ بنُ النَّضْرِ رضِي اللهُ عنه مِمَّنْ قال الله فيهم: {مِنَ الْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَيْهِ} [الأحزاب: 23]، فكان رضِي اللهُ عنه صادِقَ العَهدِ مع اللهِ تعالى، وقد غابَ رضِي اللهُ عنه عَن غَزوةِ بدرٍ، فجاءَ إلى النَّبيِّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم وقال له: يا رَسولَ اللهِ، غِبْتُ عَن أوَّلِ قِتالٍ قاتلْتَ المشركينَ، لَئِنِ اللهُ أَشهدَني قِتالَ المشركينَ لَيَرَيَّن اللهُ ما أصنَعُ، فلمَّا كان يومُ أُحدٍ، وانكشفَ المسلِمونَ، أي: انكشفوا لِعدُوِّهم وبدَتْ هزيمتُهم، قال: اللَّهمُّ إنِّي أعتذِرُ إليك ممَّا صَنعَ هؤلاء، يعني: أصحابَه مِن تركْهِم لِأمرِ النَّبيِّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم ونزولِهم مِن على الجبلِ لِجمعِ الغنائمِ، وأبرأُ إليك ممَّا صَنعَ هؤلاء، يعني: المشركينَ مِن قتالِهم لِأهلِ الإسلامِ وإيذاءِ النَّبيِّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم، ثُمَّ تَقدَّمَ فاستقبلَه سعدُ بنُ معاذٍ رضِي اللهُ عنه، فقال: يا سعدُ بنَ معاذٍ الجنَّةُ، وربِّ النَّضْرِ، إنِّي أجدُ رِيحها مِن دُونِ أُحدٍ، أي: أجدُ رِيحَ الجنَّةِ وطِيبَها عندَ جبلِ أُحدٍ، قال سعدٌ رضِي اللهُ عنه: فما استطعْتُ يا رسولَ اللهِ ما صنعَ، يعني: لا أستطيعُ أنْ أفعلَ مثلَ فِعلِه مِن إقدامِه وقتالِه لِلمشركينَ، قال أنسُ بنُ مالكٍ رضِي اللهُ عنه وكانَ أنسُ بنُ النَّضرِ رضِي اللهُ عنه عمَّه: فوَجدْنا به بِضعًا وثمانين ضربةً بِالسَّيفِ أو طعنةً بِرمحٍ أو رميةً بسهمٍ، ووجدْناه قد قُتِلَ وقد مَثَّلَ به المشرِكونَ، أي: قَطَعوا مِن أعضائِه بعد موتِه، فما عرَفَه أَحدٌ إلَّا أُختُه بِبنانِه، يعني: عَرفَتْه بِطرفِ إصبَعِه، قال أنسٌ رضِي اللهُ عنه: كنَّا نَرى، أو نَظنُّ: أنَّ هذه الآيةَ نزلَتْ فيه وفي أشباهِه: {مِنَ الْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَيْهِ}، وقال: إنَّ أُختَه، وهي تُسمَّى الرُّبَيِّع، كَسرتْ ثَنيَّةَ امرأةٍ، والثَّنيِّةُ هي الأسنانُ الأماميَّةُ، فأمرَ رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم بِالقِصاصِ، أي: بِكَسْرِ سِنِّها مثلَ ما كسرَتْ سِنَّ المرأةِ، فقالَ أنسٌ رضِي اللهُ عنه: يا رسولَ الله، والَّذي بَعثَك بِالحقِّ، لا تُكسَرُ ثَنيَّتُها، فَرَضوا بِالأرْشِ وتَركوا القِصاصَ، والأَرْشُ: هو العِوَضُ الماليُّ عَنِ الجنايةِ، فقال رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: «إنَّ مِن عبادِ اللهِ مَن لو أقسمَ على اللهِ لَأبرَّهُ»، أي: لم يَلزَمْه كفَّارةُ يمينٍ؛ لأنَّ اللهَ تعالى سوف يَبَرُّ قَسَمَه؛ وذلك لِمكانتِه عندَ اللهِ.