«Сады праведных» имама ан-Навави. Хадис № 376


376 — وعن أَبي هريرة — رضي الله عنه — ، عن النبيِّ — صلى الله عليه وسلم — ، قَالَ :
(( سَبْعَةٌ يُظِلُّهُمُ الله في ظِلِّهِ يَوْمَ لاَ ظِلَّ إِلاَّ ظِلُّهُ : إِمَامٌ عادِلٌ ، وَشَابٌ نَشَأ في عِبادة الله تَعَالَى ، وَرَجُلٌ قَلْبُهُ مُعَلَّقٌ في المَسَاجِدِ ، وَرَجُلانِ تَحَابَّا في اللهِ اجتَمَعَا عَلَيْهِ ، وَتَفَرَّقَا عَلَيْهِ ، وَرَجُلٌ دَعَتْهُ امْرَأةٌ ذاتُ مَنْصِبٍ وجَمالٍ ، فَقَالَ : إنّي أخافُ اللهَ ، وَرَجُلٌ تَصَدَّقَ بِصَدَقَةٍ فَأخْفَاهَا حَتَّى لاَ تَعْلَمَ شِمَالُهُ مَا تُنْفِقُ يَمِينُهُ ، وَرَجُلٌ ذَكَرَ الله خَالِياً فَفَاضَتْ عَيْنَاهُ )) متفقٌ عَلَيْهِ .

376 — Передают со слов Абу Хурайры, да будет доволен им Аллах, что пророк, да благословит его Аллах и приветствует, сказал:
«Семерых укроет Аллах в тени Своей в тот День, когда не будет иной тени, кроме тени Его: справедливого правителя, юношу, росшего в поклонении Всемогущему и Великому Аллаху, человека, сердце которого подвешено в мечетях,[1] (тех двоих, которые) любят друг друга в Аллахе, встречаясь и расставаясь[2] (только) ради Него, мужчину, которого позвала (к себе пожелавшая его) знатная и красивая женщина и который сказал: “Поистине, я боюсь Аллаха!”, — того, кто подаёт милостыню (настолько) тайно, что его левая рука не ведает, сколько тратит правая, а (также) того, чьи глаза наполняются слезами, когда он в одиночестве поминает Аллаха Всевышнего». Этот хадис передали аль-Бухари (660, 1443) и  Муслим (1031).   
Также его приводят имам Малик (1709), имам Ахмад (2/439), ат-Тирмизи (2391), ан-Насаи (8/222), Ибн Хузайма (358) и Ибн Хиббан (4486). См. также «Сахих аль-Джами’ ас-сагъир» (3603).


[1] Иначе говоря, того, кто любит молиться в мечетях.
[2] Под расставанием здесь подразумевается смерть.

 

شرح الحديث

 

سبعةٌ يُظِلُّهمُ اللهُ في ظِلِّه يومَ لا ظِلَّ إلا ظِلُّه : الإمامُ العادلُ، وشابٌّ نشأ في عبادةِ ربِّه، ورجلٌ قلبُه مُعَلَّقٌ في المساجدِ، ورجلان تحابَّا في اللهِ اجتَمَعا عليه وتفَرَّقا عليه، ورجلٌ طلَبَتْه امرأةٌ ذاتُ مَنصِبٍ وجمالٍ، فقال إني أخافُ اللهَ، ورجلٌ تصَدَّق، أخفَى حتى لا تَعلَمَ شِمالُه ما تُنفِقُ يمينُه، ورجلٌ ذَكَر اللهَ خاليًا، ففاضَتْ عيناه .
الراوي : أبو هريرة | المحدث : البخاري | المصدر : صحيح البخاري
الصفحة أو الرقم: 660 | خلاصة حكم المحدث : [صحيح]

التخريج : أخرجه البخاري (660) واللفظ له، ومسلم (1031)

يُبَيِّن النَّبيُّ صلَّى الله علَيه وسلَّم: سَبعةٌ يُظلُّهم اللهُ في ظِلِّه، أي: سَبعةُ أصنافٍ مِن هذهِ الأُمَّة يُظلُّهم اللهُ في ظِلِّه ويَقيهم حَرارةَ الشَّمسِ. يَومَ لا ظِلَّ إلَّا ظِلُّه، أي: يَتنعَّمون بِظِلِّه في ذلِك اليومِ الَّذي تَدنو فيه الشَّمسُ مِن رُؤوسِ العِبادِ، ويَشتَدُّ عليهم حرُّها، فلا يَجِد أحَدٌ ظِلًّا إلَّا مَن أظَلَّه اللهُ في ظِلِّه. أوَّلهم: الإمامُ العادِلُ، أي: حاكِم عادِل في رعيَّتِه يُحافِظ على حُقوقِهم، ويَرعى مَصالِحَهم، ويَحكُم فيهم بشريعةِ اللهِ. والثَّاني: شابٌّ نَشَأ في عِبادةِ ربِّه، أي: مُجتهِدًا في عِبادةِ رَبِّه، مُلتزِمًا بطاعتِه في أمرِه ونهيِه. والثَّالثُ: رجُل قَلبُه مُعَلَّق في المَساجدِ، أي: شَديد الحُبِّ والتَّعلُّقِ بالمساجدِ يَترَدَّد عليها ويُلازِم الجَماعةَ فيها. والرَّابعُ: رَجُلانِ تحابَّا في اللهِ، أي: أحبَّ كُلٌّ منهما الآخَرَ في ذاتِ اللهِ تعالى وفي سَبيلِ مَرضاتِه واجتَمَعَا على ذلِك وتَفرَّقَا عليه. والخامِسُ: رَجُل طَلَبَته امرأةٌ ذاتُ مَنصِب وجَمالٍ، أي: دعَته لنَفْسِها امرأةٌ حَسْناءُ ذاتُ حَسَبٍ ونَسَبٍ، ومالٍ وجاهٍ، ومَركزٍ مَرموقٍ، فقال: إنِّي أخافُ اللهَ، أي: فيَمنعُه خوفُ اللهِ عن اقترافِ ما يُغضِبه. والسَّادس: رَجُل تَصدَّق صدقةَ التَّطوُّعِ فأخْفَى صَدَقتَه حتَّى لا تَعلَم شِمالُه ما تُنفِق يَمينُه، أي: فبالَغَ في إخفاءِ صَدقتِه على النَّاسِ، وسَتَرَها عن كُلِّ شَيء حتَّى ولو كانَ شِمالُه رَجلًا ما عَلِمها. والسَّابع: ورَجُل ذَكَرَ اللهَ خاليًا، أي: تذكَّر عَظَمةَ اللهِ تعالى ولِقاءَه، ووقوفَه بَينَ يَدَيه، ومُحاسبتَه على أعمالِه حالَ كونِه مُنفرِدًا عن النَّاسِ ففاضَت عَيناه، أي: فَسالَت دُموعُه خَوفًا مِن اللهِ تعالى.

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