86 ( صحيح )
أتَدْرُونَ ما الغِيبَةُ ؟ ذِكْرُكَ أخاكَ بما يَكْرَهُ إنْ كانَ فيه ما تقولُ فقد اغتَبْتَهُ وإنْ لم يَكُنْ فيه فقد بَهتَّهُ
( حم م د ت ) عن أبي هريرة .
86 – Сообщается, что (однажды) Посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, спросил:
«Известно ли вам, что такое злословие/гъиба/? (Это когда) упоминаешь ты о брате твоём так, что это не понравилось бы ему. Если ему присуще то, о чём ты скажешь, значит, ты злословишь о нём, а если он не таков, значит, ты возведёшь на него напраслину/бухтан/[1]». Этот хадис передали Ахмад (2/384), Муслим (2589), Абу Дауд (4874), ат-Тирмизи (1934) со слов Абу Хурайры, да будет доволен им Аллах.
Хадис достоверный. См. «Сахих аль-Джами’ ас-сагъир» (86), «Сахих ат-Таргъиб ва-т-тархиб» (2844,) «Мишкатуль-масабих» (4828), «Мухтасар Муслим» (1806).
[1] Напраслина — ложное обвинение; клевета, наговор.
شرح الحديث
يَنْهَى النَّبِيُّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم عَنْ مَساوئِ الأخلاقِ، ومنها-كما في هذا الحديثِ-: الغِيبةُ، وهي مِن أقبحِ القَبائحِ وأكثَرِها انتشارًا بَيْنَ النَّاسِ؛ حتَّى إنَّه لا يكادُ يَسلمُ منها إلَّا القليلُ مِنَ النَّاسِ؛ فَيَسألُ أصحابَه: أَتدْرُونَ، أي: أَتَعلمونَ مَا الغِيبةُ؟ فَأَجابوا: اللهُ ورسولُهُ أعلمُ؛ فَأجابَ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: ذِكْرُكَ، أي: أَيُّهَا المخاطَبُ- خِطابًا عامًّا- أَخاكَ، أي: المسلمَ، بما يَكرَهُه، أي: بما لو سَمِعَهُ لَكَرِهَه، فَسألَ بعضُ الصِّحابةِ: أفرأيتَ، أي: فَأَخْبِرْنِي إنْ كان في أخِي ما أقولُ، أي: مِنَ الْمَنْقَصَةِ؟ فَأجابَ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: إنْ كان فيه ما تقولُ، أي: مِنَ العيبِ والمنقصَةِ، فَقدِ اغتَبْتَه، أي: لا مَعنى لِلغِيبةِ إلَّا هذا، وهو أنْ تكونَ الْمَنْقَصَةُ فيه؛ وإنْ لم يَكُنْ فيه ما تقولُ، فقد «بَهَتَّهُ»، أي: قُلْتَ عليه الْبُهتانَ وهو كَذِبٌ عَظيمٌ يُبْهَتُ فيه مَن يُقالُ في حَقِّهِ.
في الحديثِ: بيانُ مَعنى الغِيبةِ، والفرقِ بَيْنَها وبَيْنَ البُهتانِ.
وفيه: النَّهيُ عَنِ الغِيبةِ وَالبُهتانِ.