Глава 31. Достоинство садаки, которую подают тайно
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542 — Передают со слов Абу Хурайры , что пророк, да благословит его Аллах и приветствует, сказал:
«Семерых укроет Аллах в тени Своего [престола] в тот День, когда иной тени, кроме этой, не будет: справедливого правителя; юношу, который рос, поклоняясь Аллаху; человека, сердце которого подвешено в мечетях;[1][тех двоих, которые] любят друг друга ради Аллаха, встречаясь и расставаясь[2] [только] ради Него; мужчину, которого позвала [к себе пожелавшая его] знатная и красивая женщина и который сказал: «Поистине, я боюсь Аллаха!»; того, кто подаёт милостыню [столь] тайно, что его левая рука не ведает, [сколько] тратит правая, а также того человека, глаза которого наполняются слезами, когда он в одиночестве поминает Аллаха».
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[1] Имеется в виду человек, любящий молиться в мечетях.
[2] Под расставанием здесь подразумевается смерть.
شرح الحديث
التخريج : أخرجه البخاري (660) واللفظ له، ومسلم (1031)
يُبَيِّن النَّبيُّ صلَّى الله علَيه وسلَّم: سَبعةٌ يُظلُّهم اللهُ في ظِلِّه، أي: سَبعةُ أصنافٍ مِن هذهِ الأُمَّة يُظلُّهم اللهُ في ظِلِّه ويَقيهم حَرارةَ الشَّمسِ. يَومَ لا ظِلَّ إلَّا ظِلُّه، أي: يَتنعَّمون بِظِلِّه في ذلِك اليومِ الَّذي تَدنو فيه الشَّمسُ مِن رُؤوسِ العِبادِ، ويَشتَدُّ عليهم حرُّها، فلا يَجِد أحَدٌ ظِلًّا إلَّا مَن أظَلَّه اللهُ في ظِلِّه. أوَّلهم: الإمامُ العادِلُ، أي: حاكِم عادِل في رعيَّتِه يُحافِظ على حُقوقِهم، ويَرعى مَصالِحَهم، ويَحكُم فيهم بشريعةِ اللهِ. والثَّاني: شابٌّ نَشَأ في عِبادةِ ربِّه، أي: مُجتهِدًا في عِبادةِ رَبِّه، مُلتزِمًا بطاعتِه في أمرِه ونهيِه. والثَّالثُ: رجُل قَلبُه مُعَلَّق في المَساجدِ، أي: شَديد الحُبِّ والتَّعلُّقِ بالمساجدِ يَترَدَّد عليها ويُلازِم الجَماعةَ فيها. والرَّابعُ: رَجُلانِ تحابَّا في اللهِ، أي: أحبَّ كُلٌّ منهما الآخَرَ في ذاتِ اللهِ تعالى وفي سَبيلِ مَرضاتِه واجتَمَعَا على ذلِك وتَفرَّقَا عليه. والخامِسُ: رَجُل طَلَبَته امرأةٌ ذاتُ مَنصِب وجَمالٍ، أي: دعَته لنَفْسِها امرأةٌ حَسْناءُ ذاتُ حَسَبٍ ونَسَبٍ، ومالٍ وجاهٍ، ومَركزٍ مَرموقٍ، فقال: إنِّي أخافُ اللهَ، أي: فيَمنعُه خوفُ اللهِ عن اقترافِ ما يُغضِبه. والسَّادس: رَجُل تَصدَّق صدقةَ التَّطوُّعِ فأخْفَى صَدَقتَه حتَّى لا تَعلَم شِمالُه ما تُنفِق يَمينُه، أي: فبالَغَ في إخفاءِ صَدقتِه على النَّاسِ، وسَتَرَها عن كُلِّ شَيء حتَّى ولو كانَ شِمالُه رَجلًا ما عَلِمها. والسَّابع: ورَجُل ذَكَرَ اللهَ خاليًا، أي: تذكَّر عَظَمةَ اللهِ تعالى ولِقاءَه، ووقوفَه بَينَ يَدَيه، ومُحاسبتَه على أعمالِه حالَ كونِه مُنفرِدًا عن النَّاسِ ففاضَت عَيناه، أي: فَسالَت دُموعُه خَوفًا مِن اللهِ تعالى.