1296 – وعن معاذٍ — رضي الله عنه — ، عن النبيِّ — صلى الله عليه وسلم — قَالَ :
(( مَنْ قَاتَلَ في سَبِيلِ الله من رَجُلٍ مُسْلِمٍ فُوَاقَ نَاقَةٍ ، وَجَبَتْ لَهُ الجَنَّةُ ، وَمَنْ جُرِحَ جُرْحاً في سَبِيلِ اللهِ أَوْ نُكِبَ نَكْبَةً فَإنَّهَا تَجِيءُ يَوْمَ القِيَامَةِ كَأَغزَرِ مَا كَانَتْ : لَونُها الزَّعْفَرَانُ ، وَريحُها كَالمِسْكِ )) رواه أَبُو داود والترمذي ، وقال :
(( حديث حسن )) .
1296 – Передают со слов Му’аза, да будет доволен им Аллах, что пророк, да благословит его Аллах и приветствует, сказал:
«Рай обязательно (послужит наградой) для любого человека, сражавшегося на пути Аллаха (хотя бы столько времени, сколько проходит) от одной дойки верблюдицы до другой,[1] а раненый на пути Аллаха (или: … тот, кого постигнет несчастье … ) в День воскресения явится со своей раной, которая окажется такой, будто он только что её получил, (и эта рана будет) цвета шафрана, а аромат её (будет) ароматом мускуса». Этот хадис приводят Абу Дауд (2541) и ат-Тирмизи (1657), который сказал: «Хороший достоверный хадис».
Также этот хадис передали Ахмад (5/230, 235, 243, 244), ан-Насаи (6/25), Ибн Маджах (2792), ад-Дарими (2/201), ‘Абду-р-Раззакъ (9534), аль-Хаким (2/77), аль-Байхакъи (9/170).
Аль-Хаким сказал: «Достоверный хадис, соответствующий условиям Муслима». Шейх аль-Албани назвал хадис достоверным. См. «Сахих Аби Дауд (2291), «Сахих ан-Насаи» (3141), «Сахих аль-Джами’ ас-сагъир» (6416), «Сахих ат-Таргъиб ва-т-тархиб» (1278, 1323), «Тахридж Мишкатуль-масабих» (3748).
Также достоверность этого хадиса подтвердили хафиз Ибн ‘Абдуль-Барр, имам Ибн аль-‘Араби, хафиз аль-Мунзири, хафиз Ибн Хаджар, имам аш-Шаукани, Мукъбиль ибн Хади. См. «ат-Тамхид» (2493), «‘Аридатуль-ахвази» (4/137), «ат-Таргъиб» (2/246, 261), «Тахридж Мишкатуль-масабих» (4/13), «Нейль аль-аутар» (8/27), «ас-Сахих аль-Муснад» (1121, 1122).
[1] Иначе говоря, речь идёт об очень коротком промежутке времени.
شرح الحديث
التخريج : أخرجه أبو داود (2541) واللفظ له، والترمذي (1654، 1657) مفرقاً، والنسائي (3141)، وأحمد (22014) باختلاف يسير، وابن ماجه (2792) مختصراً.
جعَل اللهُ لِمَن يُقتَلُ في سَبيلِه أو يُجرَحُ أجرًا عظيمًا، وفي ذلك يقولُ النَّبِيُّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: «مَن قاتَل في سبيلِ الله»، أي: خرَج مُجاهِدًا الكُفَّارَ وأعداءَ الدِّينِ «فُوَاقَ ناقةٍ»، أي: مِقدار الوقتِ الَّذِي يكونُ بينَ الحَلْبَتَيْنِ، أي بينَ أن يُمسِكَ الضَّرعَ فيَعصِرَه ثُمَّ يَعصِرَه مرَّةً ثانيةً، والمُرادُ به: الوقتُ القليلُ، «فقد وَجَبت له الجنَّةُ»، أي: كان حقًّا على الله عزَّ وجلَّ أن يُدخِلَه الجنَّةَ. «ومَن سأَل الله القَتْلَ مِن نفسِه صادقًا»، أي: طَلَب الشَّهادَةَ في سبيلِ الله مِن قلبِه وأَخْلَصَ لها ولم يَقدِرْ عليها، «ثُمَّ مات أو قُتِل» بدون سَببٍ مِن أسبابِ القِتالِ في سبيلِ الله، «فإنَّ له أجرَ شهيدٍ»، أي: فإنَّ الله عزَّ وجلَّ يُعطِيه أجرَ الشَّهِيدِ كاملًا بتلك النِّيَّةِ.
«ومَن جُرِح جُرْحًا في سبيلِ الله أو نُكِبَ نَكْبَةً» والنَّكبَةُ بمعنَى الجُرحِ، وقيل: إنَّ الجُرحَ ما أُصِيب به مِن العَدُوِّ، والنَّكْبَةَ ما أصابَ به نفْسَه عن غيرِ قَصْدٍ، «فإنَّها تَجِيءُ»، أي: هذا الجُرحُ أو تِلكَ النَّكبةُ «يومَ القِيامَةِ كأَغْزَرِ ما كانت»، أي: يكونُ سَيَلانُ الدَّمِ منها كأَبْلَغِ ما يكونُ، «لَوْنُها لونُ الزَّعْفَرَانِ»، أي: أَحْمَرُ يَمِيلُ إلى الصُّفْرَةِ، والزَّعْفَرَانُ: نباتٌ ذو لَوْنٍ ورائحةٍ طيِّبةٍ، «ورِيحُها رِيحُ المِسْكِ. ومَن خرَج به خُرَاجٌ» يَعنِي: القُروحَ والدَّمَامِلَ الَّتِي تُصِيبُ البَدَنَ، وكانتْ إصابتُه بالخُرَاجِ بسببِ قِتالِه «في سبيلِ الله، فإنَّ عليه طابَعَ الشُّهداءِ»، أي: كان ذلك الخُرَاجُ كأنَّه خاتَمٌ مختومٌ به يَدُلُّ على أنَّه مِن الشُّهداء حينَ يُوافِي اللهَ عزَّ وجلَّ يومَ القيامةِ .
وفي الحديثِ: الحثُّ على الجهادِ وبَذلِ النَّفسِ في سبيلِ الله عزَّ وجلَّ، والترغيبُ في ذلك؛ لعِظَمِ ثوابِه.
وفيه: أنَّ مَن جعَل نِيَّتَه في عَملِ شَيءٍ خالصةً لوجهِ الله، أعطاه اللهُ أجرَ ذلك العَملِ وإنْ لم يفعَلْه..