1474 – وعن أنس — رضي الله عنه — قَالَ :
كَانَ رسولُ الله — صلى الله عليه وسلم — يقولُ : (( اللَّهُمَّ إنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ العَجْزِ ، وَالكَسَلِ ، وَالجُبْنِ ، والهَرَمِ ، والبُخْلِ ، وأعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ القَبْرِ ، وأعوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ المَحْيَا وَالمَمَاتِ )) .
1474 – Передают со слов Анаса, да будет доволен им Аллах, что посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, часто говорил:
«О Аллах, поистине, я прибегаю к Твоей защите от слабости,[1] и нерадения, и малодушия, и старческой дряхлости и скупости,[2] и я прибегаю к Твоей защите от мучений могилы и я прибегаю к Твоей защите от испытаний жизни и смерти! /Аллахумма, инни а’узу би-кя мин аль-‘аджзи, ва-ль-кясали, ва-ль-джубни, ва-ль-харами ва-ль-бухли, ва а’узу би-кя мин ‘азаби-ль-кабри ва а’узу би-кя мин фитнати-ль-махйа ва-ль-мамати!/»
وفي رواية :
(( وَضَلَعِ الدَّيْنِ ، وَغَلَبَةِ الرِّجَالِ )) . رواه مسلم .
В другой версии (этого хадиса сообщается, что посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, также сказал):
« … от бремени долга и от притеснения людей. / … ва даля’и-д-дайни ва галябати-р-риджали!/»[3] Этот хадис передал Муслим (2706). Также этот хадис приводит аль-Бухари (6363 и 6367).
[1] Речь идёт либо об отсутствии способности совершать благое, либо об отказе или откладывании совершения обязательного.
[2] Здесь подразумевается отказ от уплаты того, что человек обязан уплатить или отдать.
[3] Здесь имеется в виду, что люди чаще всего оказываются либо притеснителями, либо притесняемыми, а защиты следует просить и от одного, и от другого.
شرح الحديث
كان رسولُ الله صلَّى الله عليه وسلَّم يَدعُو: اللَّهُمَّ إنِّي أَعُوذُ بك مِن البُخل، أي: مَنْعِ ما يَجِب بذلُه. ومِن الكَسَل، وهو التَّثاقُلُ عمَّا لا يَنبغِي التَّثاقُلُ عنه، ويكون لعدمِ انبعاثِ النَّفْسِ للخيرِ مع ظهورِ الاستطاعةِ. ومِن أَرْذَلِ العُمُرِ، أي: الهَرَمِ، وهو كِبَرُ السِّنِّ المؤدِّي إلى ضَعْفِ القُوَى، وسببُ استعاذةِ النبيِّ صلَّى الله عليه وسلَّم منه: ما فيه مِن الخَرَفِ واختلالِ العَقلِ والحَوَاسِّ والضَّبطِ والفَهمِ، وتشويهِ بعضِ المَناظِر، والعَجزِ عن كثيرٍ مِن الطاعاتِ والتَّساهُلِ في بعضِها. ومِن عذابِ القَبْرِ، ومِن فِتنةِ المَسِيحِ الدَّجَّالِ، والفِتنةُ: هي الاختِبارُ والامتِحان، وفِتنة المسيحِ الدَّجَّالِ مِن أعظمِ الفِتَنِ وأخطَرِها؛ ولذلك حذَّرت الأنبياءُ جميعًا أُمَمَها مِن شرِّه وفِتنته؛ ولذلك كان النبيُّ صلَّى الله عليه وسلَّم يَستعِيذ مِن فِتنتِه في كلِّ صلاةٍ، وبيَّن أنَّ فِتنتَه مِن أكبرِ الفِتَن مُنذ خَلَق اللهُ آدَمَ عليه السلام إلى قيامِ الساعة، وسُمِّيَ مَسِيحًا لأنَّه مَمْسوحُ العَيْنِ مَطْموسُها؛ فهو أَعْوَرُ، وسُمِّي الدَّجَّالَ تَمْيِيزًا له عن المَسِيحِ عِيسَى بنِ مَرْيَمَ عليه السَّلام، مِنَ التَّدْجِيلِ بمعنىَ التَّغطِيَةِ؛ لأنَّه كَذَّابٌ يُغَطِّي الحقَّ ويَستُره، ويُظهِر الباطِلَ. ومِن فِتنة المَحْيَا والمَمَاتِ، أي: زَمَنِ الحياةِ والموتِ؛ ففِتنة المَحْيَا: ما يَعرِض للإنسانِ مُدَّةَ حياتِه مِنَ الافتِتَان بالدُّنيا والشَّهَوَاتِ والجَهَالاتِ، وما يُبتلَى به مع زَوالِ الصَّبْرِ والرِّضَا والوُقوعِ في الْآفَات، وأعظمُها- والعِياذُ بالله- أمرُ الخاتِمَةِ عندَ الموتِ، وفِتنة المَمَاتِ قِيل: فِتنة القبر، وقِيل: الفِتنة عندَ الاحتِضَار.
وفي الحديثِ: إثباتُ عذابِ القَبرِ وفِتنتِه. .