تعليق شعيب الأرنؤوط : صحيح لغيره وهذا إسناد ضعيف لانقطاعه
– Через год после кончины Посланника Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, Абу Бакр встал и, (обращаясь к людям с проповедью), сказал: «В прошлом году Посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, встал (среди нас) на этом моём месте и сказал: “Просите Аллаха благополучия, ибо, поистине, не даровано рабу (Аллаха) ничего лучше, чем благополучие. И вам следует придерживаться правдивости и благочестия, ибо они (окажутся) в Раю, и (также) вам следует остерегаться лжи и распутства, так как они (окажутся) в (адском) Огне!”» Этот хадис передал имам Ахмад (1/8).
Ахмад Шакир сказал: «Его иснад слабый». См. «Муснад Ахмад» (1/42).
Шейх Мукъбиль сказал: «Передатчики его иснада те, от которых приводятся хадисы в “Сахихе”, однако, Абу ‘Убайда, а он – ‘Амир ибн ‘Абдуллах ибн Мас’уд, не застал Абу Бакра». См. «Ахадис му’алля» (231).
Шу’айб аль-Арнаут сказал: «Достоверный хадис в силу существования других подкрепляющих его хадисов, а этот иснад слабый из-за разрыва, так как Абу ‘Убайда, а он – Ибн ‘Абдуллах ибн Мас’уд, не застал Абу Бакра. Однако, этот хадис достоверный, передающийся по другому пути, тахридж которого был приведён ранее под № 5. И он будет приведён (позже) под № 66». 1/8
شرح حديث مشابه
المحدث :البيهقي
المصدر :شعب الإيمان
الصفحة أو الرقم: 7/3292
خلاصة حكم المحدث : صحيح
التخريج : أخرجه النسائي في ((السنن الكبرى)) (10722) بنحوه، وأحمد (10) باختلاف يسير، والبيهقي في ((شعب الإيمان)) (10146) واللفظ له
نِعمةُ العافيةِ مِن أعظمِ النِّعمِ بعدَ نِعمةِ الهِدايةِ والإيمانِ، ومَن رُزِقَ العافيةَ، فقد حازَ نفائِسَ الرِّزقِ.
وفي هذا الحديثِ يقولُ أبو هُرَيْرَةَ رضِيَ اللهُ عنه، «سمعْتُ أبا بكرٍ الصِّدِّيقَ رضِيَ اللهُ عنه يقولُ على هذا المِنبَرِ»، أي: على مِنبَرِ رسولِ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: «سمعْتُ رسولَ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم يقولُ في هذا اليومِ عامَ أوَّلٍ»، أي: يخطُبُ في نفْسِ هذا اليومِ من العامِ الماضي، قال أبو بكرٍ رضِيَ اللهُ عنه: «فاستعْبَرَ»، أي: دَمَع وبَكَى صلَّى اللهُ عليه وسلَّم وهو يُحدِّثُ الناسَ؛ خوفًا على أُمَّته من الفِتنِ والبلايا. يقول أبو هُرَيْرَةَ رضِيَ اللهُ عنه: «ثم استعْبَرَ أبو بكرٍ فبَكَى» يعني: تأثَّر أبو بكرٍ لَمَّا تذكَّر بكاءَ النبيِّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم فبكى مِثلَه، ثم قال أبو بكرٍ رضِيَ اللهُ عنه: «سمعْتُ رسولَ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم يقول: لم تُؤْتَوْا شيئًا بعدَ كلمةِ الإخلاصِ»، أي: ليس هناك نِعمةٌ بعدَ شَهادةِ التوحيدِ والإيمانِ بالله، «مِثلَ العافيةِ»، وهي السَّلامةُ في الدِّينِ من الفِتنةِ، وفي البدَنِ من سيِّئِ الأسقامِ وشِدَّةِ المِحنةِ؛ فهي من الألفاظِ العامَّةِ المُتناوِلةِ لدَفْعِ جَميعِ المكروهاتِ، وهي بذلك أجَلُّ نِعَمِ اللهِ على عبدِه؛ فيتعيَّنُ مُراعاتُها وحِفظُها؛ «فسَلوا اللهَ العافيةَ»، أي: اطلُبوا منه عزَّ وجلَّ أنْ يَمُنَّ عليكم بها؛ فإنَّها نِعمةٌ عَظيمةٌ.
وفي الحديثِ: الحَثُّ على الدُّعاءِ وطلَبِ العافيةِ مِن اللهِ عزَّ وجلَّ.
وفيه: بيانُ مدَى حُبِّ الصَّحابةِ للنبيِّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم، وحِرصِهم على اتِّباعِه في أدقِّ تَفاصيلِ حياتِه، حتى في موضِعِ بُكائِه وتأثُّره( ).