1307 – وعن أَبي أُمَامَة — رضي الله عنه — ، قَالَ : قَالَ رسول الله — صلى الله عليه وسلم — :
(( أفْضَلُ الصَّدَقَاتِ ظِلُّ فُسْطَاطٍ في سَبِيلِ اللهِ وَمَنيحَةُ خَادِمٍ في سَبِيلِ اللهِ ، أَوْ طَرُوقَةُ فَحلٍ في سَبِيلِ اللهِ )) رواه الترمذي ، وقال : (( حديث حسن صحيح )) .
1307 – Передают со слов Абу Умамы (аль-Бахили), да будет доволен им Аллах, что посланник Аллаха, да благословит его Аллах и приветствует, сказал:
«Наилучшими даяниями являются: даяние на тень палатки на пути Аллаха,[1] и предоставление слуги на пути Аллаха[2] и предоставление зрелой верблюдицы для производства потомства на пути Аллаха». Этот хадис приводит ат-Тирмизи (1627), который сказал: «Хороший достоверный хадис».
Шейх аль-Албани назвал хадис хорошим. См. «Сахих аль-Джами’ ас-сагъир» (1109), «Сахих ат-Таргъиб ва-т-тархиб» (1240), «Тахридж Мишкатуль-масабих» (3750).
[1] То есть: пожертвования на экипировку участников джихада.
[2] Имеется в виду наём слуги для участника военного похода.
شرح الحديث
التخريج : أخرجه الترمذي (1627)
للصَّدَقاتِ أجرٌ عظيمٌ عندَ اللهِ تعالى، وأفضَلُ تلك الصَّدَقاتِ هي الَّتي تَكونُ في سَبيلِ اللهِ تعالى؛ إذ الجهادُ ذِروةُ سَنامِ الإسلامِ، وبه يَعِزُّ الدِّينُ وأهلُه ويَنتشِرُ في الآفاقِ.
وفي هذا الحديثِ يُبيِّن النَّبيُّ صلَّى اللهُ علَيه وسلَّم ذلك، فيقولُ: «أفضَلُ الصَّدَقاتِ ظِلُّ فُسطاطٍ في سبيلِ اللهِ»، أي: وقْفُ خَيمةٍ وما شابهَ، يَستظِلُّ بها المجاهدُ، والمرادُ هنا مُطلَقُ ما لَه ظِلٌّ مِن الأبنيَةِ، «ومَنيحَةُ خادِمٍ في سبيلِ اللهِ»، أي: هِبةُ ومنحُ خادمٍ لمُجاهِدٍ، يُساعِدُه ويَخدُمُه، «أو طَرُوقةُ فَحلٍ في سبيلِ اللهِ»، أي: النَّاقةُ الَّتي صَلَحَت لأنْ يَقْرَبَها الفَحلُ، وأقلُّ سِنِّها ثلاثُ سِنينَ، والتَّقييدُ به لِبَيانِ الأفضَليَّةِ، ومِثلُها الفرَسُ يُحمَلُ عليها المجاهِدُ، قيل: ويَجري مَجرَى تلك الصَّدَقاتِ في الأجرِ كلُّ ما يَكونُ فيه نفعٌ للمُجاهِدِ؛ فهو مِن أفضَلِ الصَّدقاتِ.